दीपावली के प्रति हमारा स्वाभाविक आकर्षण हमें याद दिलाता है कि अपने भीतर और बाहर, हर स्तर पर प्रसन्नता, प्रेम, सौहार्द व शान्ति का प्रकाश व्याप्त हो, यही हमारी आन्तरिक इच्छा है। इसके लिए धर्मग्रंथों में वर्णित दैवी-सद्गुण और भक्त के लक्षण अभिव्यक्त करने की सक्रिय चेष्टा बहुत आवश्यक है। किन्तु अपनी सामर्थ्य, परिस्थितियां और अपने साथ अन्यों के व्यवहार को देखकर कभी-कभी ऐसा लगता है कि इनको धारण करना बहुत कठिन है। इस विषय में श्री धमेंद्र मोहन सिन्हा (पूज्य ‘नानाजी’) के वचनों पर आधारित कुछ उपयोगी सूत्र प्रस्तुत हैं –
१. गीता (१६/५) में भगवान् का महान् आश्वासन है – ‘हे अर्जुन! तू शोक मत कर, क्यूंकि तू दैवी-सम्पदा से युक्त है’। अतः इन गुणों को प्रकट करना हर मनुष्य के लिए सहज, स्वाभाविक कार्य है। कठिनाई इसलिए अनुभव होती है क्योंकि इनके विपरीत विचारों-व्यवहारों को हम किसी न किसी दृष्टि से अपने अपने लिए ठीक समझते हैं, इसलिए अपने दैवी स्वभाव पर स्वयं ही आवरण डाल लेते हैं ।
२. यदि हम यह कहें कि इन आवरणों को हटाने की सामर्थ्य हम में है ही नहीं, तो इस भ्रम के निवारण के लिए पूज्य नानाजी का उत्तर है –‘जिस कम्बल को आप ओढ़ सकते हैं, उसे उतार भी सकते हैं।’
३. गीता (६/५-६) से यह स्पष्ट है कि हर परिस्थित, हर व्यक्ति के रूप में स्वयं भगवान् ही हमारे सामने प्रकट हो रहे हैं जिससे हमें इन सद्गुणों को अभिव्यक्त करने का अवसर मिले। इसलिए जब हम इस अवसर का सदुपयोग कर लेते हैं, तब हम अपने साथ मित्रता करते हैं। परन्तु जब हम किसी परिस्थिति अथवा व्यक्ति को अपने अनुचित आचरण के लिए दोषी ठहराते हैं, तब हम स्वयं ही अपने साथ शत्रुता करते हैं।
४. दैवी सद्गुण और भक्त के लक्षण अभिव्यक्त करने के लिए –
- सर्वप्रथम हम स्वाध्याय, सत्संग व मनन द्वारा इन लक्षणों को एक-एक करके और पूरी तरह समझकर अपने मन में धारण करें – अर्थात मन में यह विश्वास दृढ करें कि इन लक्षणों से युक्त होने में ही हमारा कल्याण है।
- साथ ही, मन की दुर्बलता हटाने और इन लक्षणों को प्रकट करने के लिए सच्चे मन से भगवान् से कातर प्रार्थना करें।
- व्यावहारिक स्तर पर आसुरी-सम्पदा नाश के लिए संतों द्वारा बताये गए तीन अचूक साधन हैं – अपने अपराधों के लिए निरंतर क्षमा याचना करना, भगवान् व गुरुजनों को कृतज्ञता व्यक्त करना तथा सब में भगवान् का अध्यास करके उनमें गुणदर्शन करना व प्रशंसा करना।
५. हमें मनुष्य-जन्म मिला ही इसलिए है कि हम इन सब अवगुणों व विकारों से मुक्त हो जाएाँ। परम पूज्य राधा बाबा का आश्वासन है कि मन में यदि इन्हें छोड़ने की तीव्र लालसा है, तो भगवान् की कृपा अवश्य ही हमें इनसे मुक्त कर देगी। इसलिए मुख्य आवश्यकता यह है कि इनको छोड़ने की सच्ची और तीव्र इच्छा हो।
तो आइये, भगवत्कृपा का आलम्बन लेकर हम इस कार्य में जुट जाएँ, जिससे दीपावली पर बाहर-भीतर, चारों दिशाएं भक्ति, सौहार्द और प्रेम के सद्भावों से प्रकाशित हो उठें।
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