क्या आप जानना चाहेंगे कि बुद्धि की एकाग्रता, स्मृति-शक्ति और चुनौतियों पर विजय पाने की क्षमता कैसे बढ़ाई जा सकती है? जीवन के हर पक्ष में ये तीनों ही गुण बहुत ही उपयोगी होते हैं – चाहे कार्यक्षेत्र हो, परीक्षाओं की तैयारी अथवा पारिवारिक संबंधों से व्यवहार। और आश्चर्य की बात यह है कि इन गुणों को प्राप्त करने के लिए हमें बस एक काम करना है – हमें हर पल प्रसन्न रहना है ! … क्योंकि चित्त की प्रसन्नता ही बुद्धि की स्थिरता का आधार है –
प्रसादे सर्वदु:खानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धि: पर्यवतिष्ठते ।। २-६५ ।।
और उस निर्मलता के होने पर इसके सम्पूर्ण दुःखों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्न चित्त वाले पुरुष की बुद्धि शीघ्र ही अच्छी प्रकार स्थिर हो जाती है। ।। २-६५ ।।
पूज्य ‘नानाजी’ (श्री धर्मेन्द्र मोहन सिन्हा) ने ‘श्रीमद्भगवद्गीता : जीवन वैभव’ में इस श्लोक पर विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की है, जिसके सार बिंदु इस प्रकार हैं–
१) संसार के विषयों, परिस्थितियों, व्यक्तियों से जो भी अनुभव हमें प्राप्त होते हैं, उनके प्रति मन में अच्छा-बुरा लगने का भाव, और इसके आधार पर कुछ करने अथवा न करने के संकल्प-विकल्प उठते हैं।
२) बुद्धि में भगवान् ने ऐसी शक्ति दी है कि मन के इस अच्छे-बुरे लगने से वह प्रभावित न हो। बुद्धि यह निश्चय कर सकती है कि शास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर हर परिस्थिति में हमारे लिए क्या करना उचित है? जीवन के लक्ष्य भगवत्-प्राप्ति की ओर बढ़ने के लिये हर परिस्थिति में हम क्या करें, क्या सोचें?
३) केवल इसी आधार पर निश्चय करने के अभ्यास से हमें यह योग्यता प्राप्त होती है कि हर पल अपने अंतःकरण को प्रसन्न रखा जाए। और जब चित्त प्रसन्न रहता है, तब बुद्धि की चंचलता समाप्त होती है तथा उसमें ऐसी शक्ति आती है कि वह परमात्मा में स्थिर हो सके।
४) बुद्धि की ऐसी स्थिरता से एकाग्रता और स्मरण-शक्ति, दोनों में चमत्कारिक वृद्धि होती है और जीवन की जटिल चुनौतियों का समाधान करने की योग्यता हमें प्राप्त होती है।
परम पूज्य ‘बाबूजी’ श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार एवं परम पूज्य श्री राधाबाबा की अत्यंत कृपा से तथा सत्संग एवं स्वाध्याय के माध्यम से हम सब प्रसन्न रहने के विभिन्न सिद्धांतों और उपायों से भली प्रकार परिचित हैं। अब आज से ही हम बस यह ठान लें कि आने वाले वर्ष में हम इन उपायों को निश्चयपूर्वक अपनायेंगे। भगवान् एवं संतों की कृपा का आश्रय लेकर हम हर परिस्थिति में अपने अंतःकरण में प्रसन्नता बनाये रखेंगे। साथ ही, अपने घर में प्रसन्नता का वातावरण निर्मित करेंगे जिससे हमारा तथा हमारे बच्चों एवं प्रियजनों का उत्साह और उनकी एकाग्रता बढ़ती रहे। नववर्ष में कल्याण-प्राप्ति के लिए इससे अधिक सुखदायक भेंट क्या हो सकती है !
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