– श्रीराधा –
नववर्ष २०२१ को हम क्षमा भाव से श्रृंगारित करें
(क) ‘किसी प्रकार का भी अपराध करने वाला कोई भी प्राणी क्यों न हो, अपने में बदला लेने का पूरा सामर्थ्य रहने पर भी उससे उस अपराध का किसी प्रकार भी बदला लेने की इच्छा का सर्वथा त्याग कर देना और उस अपराध के कारण उसे इस लोक या परलोक में कोई भी दण्ड न मिले – ऐसा भाव होना ‘क्षमा’ है।!’ (गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ ‘श्रीमद्भगवद्गीता : तत्त्व विवेचनी’ के अध्याय १० श्लोक ४ की व्याख्या से)
(ख) श्री धर्मेन्द्र मोहन सिन्हा (पूज्य ‘नानाजी’) द्वारा प्रस्तुत ‘पाँच आनन्द बिन्दु’ से हम सब यह जानते हैं कि हमें दूसरों से जो भी प्रतिकूल व्यवहार प्राप्त होता है, वह हमारे ही पूर्वकृत कर्म का फल है जो भगवान् के विधान से हमारे मंगल के लिए ही प्राप्त होता है – इसलिए यह मानना कि किसी दूसरे व्यक्ति ने हमारे प्रति कोई अपराध किया है, यह हमारी मूर्खता है। बुद्धि के स्तर पर हम ये बातें स्वीकार कर लेते हैं, कभी-कभी हमें यह भी भ्रम हो जाता है कि हमने उस व्यक्ति को क्षमा कर दिया है। परन्तु हमारे मन की गहराई में, गहन स्मृति में उस व्यक्ति के प्रति द्वेष, क्रोध और वैर के भाव छिपे रहते हैं – और वैसा प्रतिकूल व्यवहार दोबारा प्राप्त हाने पर वे पुरानी स्मृतियाँ तुरन्त उमड़ पड़ती हैं और हम पुनः उन्हीं विषैले विचारों का शिकार बन जाते हैं। इस कारण सम्बन्धों में दरारें बढ़ती ही रहती हैं और हमारा हृदय स्थाई समाधान के लिए व्याकुल हो उठता है।
(ग) गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘सत्संग-सुधा’ के लेख ‘मानसिक विष और उसके त्याग के उपाय’ में से परम पूज्य राधा बाबा के निम्नांकित वचनों पर मनन करने से इन विषैले भावों पर स्थाई विजय प्राप्त की जा सकती है –
- ये (घृणा, द्वेष, वैर, क्रोध, आदि) दुर्गुणरूपी विष तो ऐसे है, जो जन्म-जन्मान्तर तक साथ रहेंगे, सदा जलाते रहेंगे, अनेक प्रकार की यातनाएँ देते रहेंगे और न जाने कितनी बार जन्म-मरण की मार्मिक पीड़ा देंगे।
- जिस समय हमारे अन्दर किसी के प्रति घृणा की वृत्ति जागती है; द्वेष का भाव उदय होता है … उस समय उन-उन वृत्तियों के अनुरूप ही विचारों की मूर्तियाँ बनने लग जाती हैं। … जैसे ये मूर्तियाँ हमारे अन्दर बनीं कि बस, इसी क्षण, जिनके निमित्त से बनी हैं; उनकी ओर दौड़ जाती हैं। … वहाँ जाकर वह उस व्यक्ति के शारीरिक तेज (Aura)से चिपट जाती है तथा यदि उसमें पहले से ही वैसा बीज (घृणा का सुप्तभाव) वर्तमान है तो उसमें भी अपने अनुरूप घृणा का भाव पैदा कर देती है।
- इस विषयसमूह का – दुर्गुणों का त्याग अत्यन्त आवश्यक है। अन्यथा हम सदा जलते रहेंगे, कभी सुखी नहीं होंगे। … इसलिए इनका प्रतिकार हमें करना ही है; पर प्रतिकार बातों से नहीं होगा। इन्हें शान्त करने के लिए हमें साधना में तत्पर होकर लगना पड़ेगा। … पहले तो यह दृढ़ विश्वास करना पड़ेगा कि वास्तव में ये भयानक विष हैं और शीघ्र से शीघ्र त्यागने योग्य हैं।
- फिर साधना में लगें। जिस समय हमारे मन में किसी के प्रति घृणा की वृत्ति जागे; उसी समय उसी क्षण हम अपने में उसके प्रति प्रेम की भावना जाग्रत करें। …क्रोध आने की सम्भावना से पूर्व ही हम क्षमा के विचारों का मनन आरम्भ कर दें। परिणाम यह होगा कि स्वभाववश क्रोध आने पर उनके आगे-पीछे क्षमा के भाव, क्षमा की मूर्ति घेरे रहेगी । हम सोचें – जब हमसे अपराध बन जाता है; तब हम पर कोई नाराज़ न हो; हमें क्षमा कर दें, यह इच्छा हम में होती है या नहीं? न जाने हम प्रभु का कितना अपराध प्रतिदिन, प्रतिक्षण करते हैं। यदि प्रभु हमें क्षमा न करें तो हमारी क्या दशा हो। … कहने का तात्पर्य यह है कि हमारा यदि क्रोधी स्वभाव है तो हम बड़ी तत्परता से दिन-रात निरन्तर क्षमा की भावनाओं को अपने अन्दर बढ़ाएँ। … क्षमा के ये भाव कभी निष्फल तो होंगे ही नहीं, बल्कि हमें शीतल करके दूसरों के उन दोषों को भी निश्चय धो देंगे।
(घ) ‘श्रीमद्भगवद्गीता : तत्त्व विवेचनी’ ग्रन्थ में अध्याय १२ श्लोक १३ के अर्थ में वर्णन आता है कि भक्त वही है जो ‘क्षमावान् है अर्थात अपराध करने वाले को भी अभय देने वाला है’। इससे यह सुन्दर भाव गूँजता है कि केवल अपने मन के विचारों का समाधान करके क्षमा का भाव धारण करना पर्याप्त नहीं है। इसके साथ दूसरे व्यक्ति को अभयदान देने के लिए सक्रिय चेष्टा भी करना आवश्यक है। उसके प्रति अपना सौहार्द व्यक्त करके, प्रेम का व्यवहार करके उसे आश्वस्त करना आवश्यक है कि उसके प्रति हमारे मन में तनिक भी विपरीत भाव नहीं है। इस प्रकार जब अपना और दूसरों का, दोनों का मन शान्त हो जाए, तभी क्षमा की प्रक्रिया पूर्ण माननी चाहिए।
तो आइए, इस नवर्ष में हम ठान लें कि अपने प्रत्येक सम्बन्ध में, और विशेषकर उनमें जहाँ वैमनस्य, द्वेष या शिकायत का थोड़ा सा भी भाव हो, उनके प्रति हम क्षमा की इस प्रक्रिया को पूर्ण करके ही रहेंगे। तभी हमारा आगामी वर्ष पारस्परिक प्रेम और भगवद्भक्ति के माधुर्य से श्रृंगारित हो सकेगा।
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