श्री युगल सरकार, परम पूज्य श्रीहनुमानप्रसाद पोद्दार ‘भाईजी’, परम पूज्य श्रीराधा बाबा व
सभी पूज्य संतों की अत्यंत कृपा से दीपावली के पर्व पर हम सभी को यह प्रेरणा होती है कि हम
अपने हृदय का आसन अत्यंत कोमल कैसे बनाएँ, जिससे करुणामय श्रीसीतारामजी उस पर आकर
विराज सकें? प्रभु के आगमन पथ को सुंदर, उज्ज्वल विचारों व भावों से हम कैसे सजाएँ? और दैनिक
जीवन के उतार-चढ़ाव में भी उनके प्रेमिल संग का अनुभव हम प्रतिदिन कैसे करें?
इसके लिए कुछ विचारणीय बिंदु प्रस्तुत है –
पूज्य ‘नानाजी’ (श्री धर्मेन्द्र मोहन सिन्हा) ने ‘राम’ का सरल अर्थ देते हुए लिखा है – ‘जो
सब में रमा हुआ है’ (आनंद यात्रा-१, लेख III-५, उ० ५)।
इस अर्थ का व्यावहारिक पक्ष श्रीरामचरितमानस के इस दोहे में वर्णित है –
उमा जे राम चरन रत बिगत काम मद क्रोध ।।
निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं बिरोध ।।
‘(शिवजी कहते हैं -) हे उमा! जो श्रीरामजी के चरणों के प्रेमी हैं और काम, अभिमान और क्रोध से
रहित हैं, वे जगत् को अपने प्रभु से भरा हुआ देखते हैं, फिर वे किससे वैर करें ?’
(दो० ११२(ख), उत्तरकाण्ड)
संत कवि श्रीतुलसीदासजी के इन वचनों से प्रभु की रुचि स्पष्ट है – कि अपने संपर्क में आने
वाले हर व्यक्ति से हम ऐसा ही व्यवहार करें, जैसा हम अपने इष्ट के साथ करना चाहेंगे। तभी अपने
हर आचरण द्वारा हम अपने प्रिय प्रभु की उपासना कर सकेंगे।
विडंबना यह है कि एकांत में हम प्रभु की मधुर उपासना कर लेते हैं तथा अनुकूल संबंधों को
अत्यंत प्रेम से निभाते हैं। किंतु जिन व्यक्तियों से प्रतिकूलता प्राप्त होती है या जिनके व्यक्तित्व में हमें
दोष प्रतीत होते हैं, उनसे व्यवहार करते समय हम रूखे आचरण और प्रतिक्रियाओं को अपना लेते हैं।
ऐसे में हम समझ-बूझ कर इस सिद्धांत की ओर से मुँह फेर लेते हैं कि यदि हम किसी भी प्रकार से
उनका अपमान कर रहे हैं या उनके हृदय को कष्ट पहुँचा रहे हैं, तो वास्तव में हम अपने प्रिय, कोमल
प्रभु को ही कष्ट पहुँचा रहे हैं। हमारा अहंकार इस भाव को पकड़े रहता है कि जब वह व्यक्ति मुझसे
ठीक से आचरण नहीं करता, तब मैं उससे संवेदनशीलता, प्रेम और आदर का आचरण कैसे करूँ?!
दीपावली का पूर्ण लाभ उठाने के लिये यह आवश्यक है कि इस प्रकार के विचारों को हम
निश्चयपूर्वक त्यागें, इस मोह-रूपी अंधकार से अपने को उबारकर प्रकाश की ओर बढ़ें। इस संबंध में
आनंद यात्रा-१, लेख IV-११ में पूज्य नानाजी द्वारा प्रस्तुत “पारस्परिक व्यवहार मधुर बनाने के लिए
सरल युक्तियाँ” का अध्ययन अत्यंत लाभदायक होगा। आश्वासन की बात यह है कि यदि हम उपरोक्त
दोहे का पालन करने का निश्चय दृढ़ कर लें तो यह प्रभु श्रीसीतारामजी और सभी पूज्य संतों की अनुपम
सेवा करने का अवसर बन जाएगा, और फिर उन सब की असीम शक्ति हमारी सहायता के लिये दौड़
पड़ेगी।
तो आइए, किसी एक प्रतिकूल लगने वाले संबंध से हम आरंभ करें, और उनके साथ ऐसा
ही व्यवहार करने की ठान लें जैसा हम प्रभु के साथ करना चाहेंगे। इस चेष्टा से सब में विराजित
श्रीसीतारामजी को अवश्य ही सुख मिलेगा और हम प्रतिदिन प्रभु की निकटता और दीपावली उत्सव
का आनंद अनुभव कर सकेंगे।
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