(सन्देश-१२) – अगस्त २०११ का द्वितीय पाक्षिक निवेदन –
(आधार – परम पूज्य स्वामी बालकृष्ण दास जी “महाराजश्री” द्वारा रचित “लक्ष्य की ओर” पृ० १८९)
परम पूज्य महाराजश्री के अनुसार “उत्सव उसका नाम है कि पूर्व से ही रहते हुए, वर्तमान में रहने के स्थायी-भाव से भावित प्रभावित कर दे। उत्सव में ही रहने के सुन्दर भ्रम में पटक दे।” तात्पर्य यह है कि किसी एक दिन उल्लास से रहना उत्सव नहीं है। यह तो पहले से ही तैयारी करते हुए किसी स्थायी-भाव में प्रतिष्ठित होकर उसी भाव में भविष्य के लिये रहना वास्तविक “उत्सव” है। उदाहरणार्थ, किसी विद्यालय में जो वार्षिकोत्सव मनाया जाता है वह केवल उस एक दिन अथवा एक सप्ताह के लिये नहीं होता, वह तो पूर्व के सत्र में किये हुए अध्ययन, खेलकूद, संगीत-शिक्षा आदि में छात्रों को उत्कृष्टता के पुरस्कार देते हुए उन्हें भविष्य के सत्र में उत्साहवर्द्धन के लिये होता है। इसी प्रकार स्थायी निवास के लिये निर्मित होने वाले किसी मकान को छः मास पूर्व से ईंट पर ईंट रखते हुए बनाया जाता है। मकान बन जाने पर फिर उसमें स्थायी रूप से रहा जाता है। फिर मकान बनने से पूर्व की कष्टप्रद स्थिति में वापिस नहीं जाया जाता।
इसी प्रकार मनुष्य जीवन के एकमात्र लक्ष्य-भगवत्प्राप्ति (निवेदन संख्या १) को अपना उद्देश्य रखते हुए प्रत्येक त्यौहार को एक पड़ाव मानकर साधन को निष्ठापूर्वक सम्पन्न किया जाना चाहिये। फिर गृहप्रवेश के समारोह के रूप में त्यौहार को मनाना ही उचित है। त्यौहार के दिन अग्निहोत्र से आरम्भ कर नाम-जप के अनुष्ठान (चौंसठ माला), श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीमद्भागवत् महापुराण अथवा श्रीरामचरितमानस का स्वाध्याय करते हुए सायंकाल को कम से कम एक घंटे का सामूहिक कीर्तन करना चाहिये। इस आयोजन में सभी पारिवारिक सदस्यों तथा घनिष्ठ मित्रों को भी आमंत्रित करना चाहिये। घर को उसी प्रकार सुरुचिपूर्ण रूप से सजाया जाना चाहिये, जैसे विद्यालय के वार्षिकोत्सव के लिये विद्यालय को अथवा गृहप्रवेश के लिये घर को सजाया जाता है। कुरुचिपूर्ण संगीत अथवा नृत्य तथा वायुमण्डल प्रदूषित करने वाले पटाखों आदि का दृढ़तापूर्वक बहिष्कार करना चाहिये।
यह दृढ़ निश्चय करना चाहिये कि उत्सव के बाद आगामी उत्सव की साधन्निष्ठ तैयारी उसी प्रकार करनी है, जैसे एक वार्षिकोत्सव के बाद आगामी सत्र के वार्षिकोत्सव अथवा आगामी वर्ष के लिये निवास को और अधिक सुन्दर बनाया जाता है। उत्सव के बाद पुनः बीते हुए कष्टप्रद जीवन में नहीं जाना है।
इसके विपरीत केवल एक दिन के लिये उत्सव मनाना ऐसा ही है जैसे एक दिन के लिये किसी होटल में एक सजे सजाये कमरे में रहकर पुनः अपने पुराने निवास में लौटना पड़े।
इस वर्ष २२-२२ अगस्त को जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर भगवान् श्रीकृष्ण का प्राकट्योत्सव मनाकर आगामी वर्ष के त्यौहारों की श्रृंखला आरम्भ हो गयी है। अब दैनिक अग्निहोत्र, नाम-जप, स्वाध्याय तथा सत्संग, भजन-कीर्तन आदि का नवीन कार्यक्रम तैयार कर प्रत्येक त्यौहार को अत्यधिक उल्लास से साधना दिवस के रूप में उत्साहपूर्वक मनायें। कुछ प्रमुख त्यौहारों के रहस्य पर आनन्द यात्रा के प्रथम पुष्प में प्रकाश डाला जा चुका है। उसका मनन करें एवं ५ सितम्बर को राधाष्टमी से लेकर आगामी जन्माष्टमी तक का कार्यक्रम बनायें। यह याद रखें कि हमारा स्थायी निवास भगवान में है(गीता ९/१८)। अतः यह जीवन रहते ही हमें भगवत्प्राप्ति कर अनन्त आनन्द में रहना है। भगवान् की पूर्ण कृपा हम पर है और वह कृपा ही हमारे कार्यक्रम को सफल बनायेगी।
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