।। राधा ।।
।। नववर्ष माधुर्यमय हो ।।
श्रीयुगल सरकार, पूज्य संतों व गुरुजनों की असीम कृपा से हम पुनः एक नवीन वर्ष के स्वागत हेतु प्रस्तुत हैं। भगवान् द्वारा प्रदान किये गये बुद्धि तत्त्व के सदुपयोग से इस अमूल्य मनुष्य-जीवन रूपी सरगम के आरोहात्मक व अवरोहात्मक अनुभवों को हम मधुर बना सकते हैं। इसके लिये श्रीमद्भगवद्गीता में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन दिया गया है –
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: ।। ५ ।।
(यह योगारूढ़ता कल्याण में हेतु कही है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि) अपने द्वारा संसार-समुद्र से अपना उद्धार करे और अपनी आत्मा को अधोगति को न पहुँचावे, क्योंकि यह जीवात्मा आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है, अर्थात् और कोई शत्रु या मित्र नहीं है। (गीता ६/५)
इस वर्ष हम सभी अपने पशु-स्वभाव से अपना उद्धार करने को कटिबद्ध हो जायें अर्थात् हम सभी अपने मित्र बनें। जो व्यक्ति धर्मग्रन्थों का अध्ययन कर उनमें प्रतिपादित सिद्धान्तों का दैनिक-जीवन में व्यवहार करते हुए अपने मन को पूर्णतया नियंत्रित कर ले, वही अपने साथ मित्रता का व्यवहार करता है।
गीता ३/३४ में भगवान् कहते हैं कि इन्द्रियों में स्थित राग-द्वेष ही हमारे कल्याण-मार्ग में विघ्न करने वाले महान् शत्रु हैं। कोई भी अन्य व्यक्ति, वस्तु, घटना अथवा परिस्थिति हमारे शत्रु नहीं हैं। मनुष्य-जीवन में यह विलक्षण सामर्थ्य प्राप्त है कि बुद्धि के सदुपयोग से मनुष्य यह सुनिश्चित कर सकता है कि वर्तमान के कर्म, व्यवहार और विचार राग-द्वेष के भाव से भावित न होने पायें । आगामी वर्ष में हम अपने मित्र बनकर सर्वत्र मैत्री का विस्तार कर सकें, इसके लिये शास्त्र व पूज्य संत वचनों के आधार पर संकलित कुछ बिन्दु प्रस्तुत हैं –
१. दूसरे के कर्तव्यों को न देखकर प्रत्येक परिस्थिति में शास्त्र-मर्यादा के अनुसार अपने कर्तव्यों का सम्पादन करने की चेष्टा करें।
२. प्रायः हम परिस्थिति को सुधारने की चेष्टा करते हैं परन्तु वास्तव में परिस्थिति का विधान भगवान् द्वारा हमारे स्वयं के सुधार हेतु होता है।
३. राग भगवान् के चरणों में हो जिसमें सभी रूपों में व्यक्त भगवान् को प्रेम प्रदान किया जाये। द्वेष अपने अन्तःकरण में छिपकर बैठे विकारों से हो।
४. अपना उद्धार करने हेतु निरन्तर नाम-जप तथा करुणामय प्रभु का चिन्तन करते हुए कातर भाव से भगवान् के चरणों में इन शत्रुओं से मुक्त होने की शक्ति की याचना करें।
राग-द्वेष से मुक्त होते ही अन्तःकरण में अद्भुत हल्कापन का अनुभव होता है तथा नवीन शक्ति और उत्साह का संचार होता है। इस प्रकार इस नव-वर्ष में अपने, अपने स्वजनों तथा सम्पूर्ण संसार के साथ मित्रता कर, सभी सम्बन्धों में प्रेम व सौहार्द का विस्तार कर हम जीवन को मधुरता से भर लें।
इन शुभकामनाओं सहित सभी को नव-वर्ष की बहुत बधाई।
नववर्ष-२०१९
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