नाम जप अनुष्ठान २०२४

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।

आदरणीय सदस्यों,
जय जय राधे श्याम।

गीताप्रेस गोरखपुर की मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ में प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा से चैत्र पूर्णिमा तक उपरोक्त षोडशाक्षर मंत्र के वार्षिक नाम-जप अनुष्ठान की अपील प्रकाशित की जाती है। इस अनुष्ठान में परम पूज्य ‘बाबूजी’ (श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार) की कृपा ओतप्रोत है, इसलिए पूज्य ‘नानाजी’ (श्री धर्मेन्द्र मोहन सिन्हा) ने हमें सदा प्रोत्साहित किया कि अत्यंत उत्साह से इसमें सम्मिलित होना हमारा परम सौभाग्य है।

पिछले वर्ष ‘कल्याण’ की अपील में ९५,००,००,००० (पंचानबे करोड़) मंत्र नाम-जप की प्रार्थना की गई थी। अक्टूबर २०२४ अंक में प्रकाशित सूचना के अनुसार २०२३-२४ में विभिन्न स्थानों से कुल मिलाकर लगभग ६८,००,००,००० (अड़सठ करोड़) मंत्र नाम-जप की पूर्ति ही हो सकी थी, जो अपेक्षित लक्ष्य से कम है। भगवान् की असीम कृपा से पूज्य नानाजी के परिकर से संबंधित जपकर्ताओं का इसमें योगदान १६,००,००,००० (सोलह करोड़) मंत्र नाम-जप था। आपके इस उत्साह के लिए सभी को बहुत-बहुत आभार।

प्रार्थना है कि इस वर्ष अब और भी उत्साह से इस अनुष्ठान में योगदान देने की कृपा करें। इसके अंतर्गत पूज्य नानाजी का यह अनुरोध रहता कि हर वर्ष हम अपने दैनिक नाम-जप माला का लक्ष्य पिछले वर्ष के लक्ष्य से १०% अधिक रखने की पूरी चेष्टा करें। साथ ही, अपने से संबंधित स्वजनों एवं गोष्ठी सदस्यों को माला से नियमित नाम-जप करने के लिए प्रोत्साहित करें जिससे जपकर्ताओं की संख्या में बढ़ोत्तरी हो। अनुष्ठान अवधि के मध्य में भी नवीन सदस्य इसमें सम्मिलित होकर अपनी नाम-जप माला की संख्या लिखवा सकते हैं।

‘कल्याण’ के अक्टूबर २०२४ अंक में प्रकाशित सूचना के अनुसार इस वर्ष का नाम-जप अनुष्ठान शुक्रवार १५ नवंबर २०२४ से शनिवार १२ अप्रैल २०२५ तक है। अतः गोष्ठी संचालकों से प्रार्थना है कि सभी सदस्यों के दैनिक नाम-जप माला के लक्ष्य रविवार १० नवम्बर २०२४ तक हमें भेजने की कृपा करें जिससे यह सूचना ‘कल्याण’ कार्यालय को शीघ्रातिशीघ्र भेजी जा सके। इस विषय में ‘कल्याण’ २०२४ में प्रकाशित सूचना की प्रति (२ पृष्ठ) इस संदेश के साथ संलग्न हैं। आपसे प्रार्थना है कि सभी गोष्ठी सदस्यों तक इसे पहुँचाने की कृपा करें जिससे अनुष्ठान में पूर्ण तत्परता से योगदान देने के लिए प्रेरणा मिल सके।

पूज्य नानाजी एवं सिन्हा-स्वाध्याय मण्डल की ओर से
सभी को जय जय राधे श्याम।

 

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कल्याण अनुष्ठान सूचना २०२४-२५ Download Pdf

 

राधा निकुंज

पूज्य नानाजी-नानीजी का गृहस्थाश्रम

सौंप दिये मन प्राण तुम्हीं को

पद रत्नाकर पद ४५४

सौंप दिये मन प्राण तुम्हींको सौंप दिये ममता अभिमान।
जब जैसे, जी चाहे बरतो, अपनी वस्तु सर्वथा जान ॥

मत सकुचाओ मनकी करते, सोचो नहीं दूसरी बात।
मेरा कुछ भी रहा न अब तो, तुमको सब कुछ पूरा ज्ञात ॥

मान-अमान, दुःख-सुखसे अब मेरा रहा न कुछ सम्बन्ध |
तुम्हीं एक कैवल्य मोक्ष हो, तुमही केवल मेरे बन्ध ॥

रहूँ कहीं, कैसे भी, रहती बसी तुम्हारे अंदर नित्य ।
छूटे सभी अन्य आश्रय अब, मिटे सभी सम्बन्ध अनित्य ॥

एक तुम्हारे चरणकमल में हुआ विसर्जित सब संसार ।
रहे एक स्वामी बस, तुम ही, करो सदा स्वच्छन्द विहार ॥

आजु इन नयनन्हि निरखें श्याम

पद रत्नाकर पद ४३८

आजु इन नयनन्हि निरखें श्याम ।
निकले है मेरे मारग तैं नव नटवर अभिराम ॥

मो तन देखि मधुर मुसुकाने मोहन-दृष्टि ललाम।
ताही छिन तैं भए तिनहिं के तन-मन-मति-धन-धाम ॥

हौं बिनु मोल बिकी तिन चरनन्हि, रह्मौ न जग कछु काम ।
माधव-पद-पंकज पायौ नित मन-मधुकर बिश्राम ॥

मधुपुरी गवन करत जीवन-धन

पद रत्नाकर पद ३१७

मधुपुरी गवन करत जीवन-धन।
लै दाउए संग सुफलक-सुत, सुनि जरि उठी ज्वाल सब मन-तन ॥

भई बिकल, छायौ विषाद मुख, सिथिल भए सब अंग सु-सोभन ।
उर-रस जरयौ, रहे सूखे द्वय दृग अपलक, तम व्यापि गयौ घन ॥

लगे आय समुझावन प्रियतम, पै न सके, प्रगट्यौ विषाद मन ।
बानी रूकी, प्रिया लखि आरत, थिर तन भयौ, मनो बिनु चेतन ॥

भावी विरहानल प्रिय-प्यारी जरन लगे, बिसरे जग-जीवन।
कौन कहै महिमा या रति की, गति न जहाँ पावत सुर-मुनि-जन ॥

कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूँ

पद रत्नाकर पद १२७

कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूँ अब तेरे काज ।
पालन करने को आज्ञा तव मैं नियुक्त होता हूँ आज ॥

अन्तर में स्थित रहकर मेरी बागडोर पकड़े रहना।
निपट निरंकुश चञ्चल मन को सावधान करते रहना ।।

अन्तर्यामी को अन्तः स्थित देख सशङ्कित होवे मन ।
पाप-वासना उठते ही हो नाश लाज से वह जल-भुन ॥

जीवों का कलरव जो दिनभर सुनने में मेरे आवे ।
तेरा ही गुणगान जान मन प्रमुदित हो अति सुख पावे ॥

तू ही है सर्वत्र व्याप्त हरि ! तुझमें यह सारा संसार ।
इसी भावनासे अन्तर भर मिलूँ सभी से तुझे निहार ॥

प्रतिपल निज इन्द्रिय-समूह से जो कुछ भी आचार करूँ।
केवल तुझे रिझाने को, बस, तेरा ही व्यवहार करूँ ।।

मंद-मंद मुसकावत आवत

पद रत्नाकर पद २६९

मंद-मंद मुसकावत आवत ।
देखि दूर ही तें भइ बिहवल राधा-मन आनँद न समावत ॥

नव नीरद-घनस्याम-कांति कल, पीत बसन बर तन पर सोभित ।
मालति-कमल-माल उर राजत, भँवर-पाँति मँडरात सुलोभित ॥

सकल अंग चंदन अनुलेपित, रत्नाभरन-बिभूषित सुचि तन ।
सिखा सुसोभित मोर-पिच्छ, मनि-मुकुट सुमंडित, केस कृष्ण-घन ॥

मुख प्रसन्न मुनि-मानस-हर मृदुहास-छटा चहुँ ओर बिखेरत ।
चित्त-बित्त हर लेत निमिष महँ जा तन करि कटाच्छ दृग फेरत ॥

मुरली, क्रीड़ा-कमल प्रफुल्लित लिये एक कर, दूजे दरपन ।
देखि राधिका, करन लगी निज पुनः पुनः अर्पित कौं अरपन ॥

कृपा जो राधाजू की चहियै

पद रत्नाकर पद २३

कृपा जो राधाजू की चहियै।
तो राधाबर की सेवा में तन मन सदा उमहियै ।।

माधव की सुख-मूल राधिका, तिनके अनुगत रहियै ।
तिन के सुख-संपादन कौ पथ सूधौ अबिरत गहियै ॥

राधा पद-सरोज-सेवा में चित निज नित अरुझइयै ।
या बिधि स्याम-सुखद राधा-सेवा सौं स्याम रिझइयै ॥

रीझत स्याम, राधिका रानी की अनुकंपा पइयै ।
निभृत निकुंज जुगलसेवा कौ सरस सुअवसर लहियै ॥

निभृत निकुंज - मध्य

पद रत्नाकर पद २३५

निभृत-निकुञ्ज-मध्य निशि-रत श्रीराधामाधव मधुर विलास ।
मधुर दिव्य लीला-प्रमत्त वर बहा रहे निर्मल निर्यास ॥

बरस रही रस सुधा मधुर शुचि छाया सब दिशि अति उल्लास ।
लीलामय कर रहे निरन्तर नव-नव लीला ललित प्रकाश ॥

सेवामयी परम चतुरा अति स्वसुख-वासनाहीन ललाम ।
यथायोग साधन-सामग्री वे प्रस्तुत करतीं, निष्काम ॥

‘मधुर युगल हों परम सुखी’ बस, केवल यह इच्छा अभिराम ।
निरख रहीं पवित्र नेत्रोंसे युगल मधुर लीला अविराम ॥

जय वसुदेव-देवकीनन्दन

पद रत्नाकर पद २५

जय वसुदेव-देवकीनन्दन, जयति यशोदा-नंदनन्दन ।
जयति असुर-दल-कंदन, जय-जय प्रेमीजन मानस-चन्दन ॥

बाँकी भौहें, तिरछी चितवन, नलिन-विलोचन रसवर्षी ।
बदन मनोहर मदन-दर्प-हर परमहंस-मुनि-मन-कर्षी ॥

अरूण अधर धर मुरलि मधुर मुसकान मंजु मृदु सुधिहारी ।
भाल तिलक, घुँघराली अलकैं, अलिकुल-मद-मर्दनकारी ॥

गुंजाहार, सुशोभित कौस्तुभ सुरभित सुमनों की माला।
रूप-सुधा-मद पी-पी सब सम्मोहित ब्रजजन-ब्रजबाला ॥

जय वसुदेव-देवकीनंदन, जयति यशोदा-नंदनन्दन ।
जयति असुर-दल कंदन, जय जय प्रेमीजन मानस-चन्दन ॥