नाम जप अनुष्ठान २०२०

श्री हरिः

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।

आदरणीय जपकर्ता,

जय जय राधे श्याम । गीताप्रेस गोरखपुर की मासिक पत्रिका “कल्याण” में प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा से चैत्र पूर्णिमा तक उपरोक्त षोडशाक्षरमंत्र जप के वार्षिक अनुष्ठान की अपील प्रकाशित की जाती है। श्रीभगवन्नाम जप के इस अनुष्ठान का आरम्भ परम पूज्य “बाबूजी” (श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार “भाईजी”) ने कराया था। अतः पूज्य “नानाजी’ (श्री धर्मेन्द्र मोहन सिन्हा) का विश्वास रहा है कि इस अनुष्ठान के रूप में आज भी परम पूज्य बाबूजी की असीम कृपाशक्ति और उनका आशीर्वाद सहज रूप से उपलब्ध है।

 

“कल्याण” के अक्तूबर २०२० अंक के पृष्ठ ४४-४५ में प्रकाशित अपील व नाम-जप के नियम इस मेल के साथ संलग्न है। गत वर्ष ९५,००,००,००० (पंचानबे करोड़) नाम जप की प्रार्थना की गई थी। इसमें पूज्य “नानाजी” के परिकर से सम्बन्धित जपकर्ताओं का प्रस्तावित जप ८,७५,००,००० (आठ करोड़ पचहत्तर लाख) था व भगवत्कृपा से पूर्ति उससे अधिक ही हुई। इसके लिये आप सभी को बहुत-बहुत आभार। उपरोक्त प्रकाशित सूचना के अनुसार विभिन्‍न स्थानों से कुल- मिलाकर लगभग ७३,००,००,००० (तिहत्तर करोड़) मंत्र नाम जप की सूचना ही प्राप्त हुई है जो लक्ष्य से कम है।

 

इस वर्ष भी हमारी प्रस्तावित जप संख्या ८,७५,००,००० (आठ करोड़ पचहत्तर लाख) है। अतः गीता गोष्ठियों से जुड़े परिवारों व समस्त जपकर्ताओं से अनुरोध है कि (पूज्य “नानाजी” की आज्ञानुसार) जो भी षोडश की माला संख्या आप अभी कर रहे हैं, उसमें इस वर्ष वृद्धि अवश्य करें। साथ ही, अपने से सम्बन्धित जपकर्ताओं की संख्या भी बढ़ाएँ। इसके अन्तर्गत अपने परिवार, सम्बन्धियों एवं मित्रवर्ग में नामजप का प्रचार-प्रसार करें और उन्हें प्रेरित करें कि वे भी जपमाला से नाम-जप करें। नये जपकर्ताओं के संशयों का निवारण करने के लिये उन्हें “कल्याण” में छपी सूचना अवश्य पढ़ाएँ। यदि अनुष्ठान प्रारम्भ होने की तिथि के कुछ सप्ताह अथवा महीने बाद भी कोई नये सदस्य इस अनुष्ठान में सम्मिलित होना चाहें, तो विलम्ब की चिन्ता न करके उन्हें इस दिशा में अवश्य प्रेरित करें तथा अनुष्ठान समाप्ति की तिथि तक उनके द्वारा की गयी जप संख्या की सूचना हमें साथ ही भेजें।

 

इस वर्ष के अनुष्ठान की अवधि ३० नवम्बर, २०२० से २७ अप्रैल, २०२१ तक होगी। अतः सभी गोष्ठी-संचालकों से अनुरोध है कि वे अपनी गोष्ठियों में इस पत्र को अवश्य पढ़ें । फिर आगामी अनुष्ठान के लिए अपनी तथा गोष्ठियों में सम्मिलित सदस्यों की प्रतिदिन की प्रस्तावित जप माला संख्या क्या होगी, इसकी सूचना रविवार दिनांक १३-१२.२०२० तक अवश्य बताने का कष्ट करें। प्रस्तावित जप माला संख्या की यह सूचना अपने-अपने गोष्ठी-संचालकों को ही लिखवाने का कष्ट करें। यदि किसी कारणवश गोष्ठी-संचालकों से सम्पर्क न हो सके, केवल उस परिस्थिती में यह सूचना निम्नांकित ई-मेल पते पर भेजें – sinha.swadhyay@gmail.com अथवा दूरभाष द्वारा निम्नांकित नम्बरों पर ज्योति दीदी अथवा संजय भैया को बता दें –

 

०१२१-२६६०१२२ (0120-2660122)
०९८९७२३१५१० (09897231510)

 

परम पूज्य बाबूजी की इस कृपाभरी व्यवस्था का पूर्ण लाभ हम सब उठा सकें, इसी मंगल कामना सहित,
पूज्य “नानाजी” (श्री धर्मेन्द्र मोहन सिन्हा) की ओर से
अबीर मिश्रा

Download Pdf

 

राधा निकुंज

पूज्य नानाजी-नानीजी का गृहस्थाश्रम

सौंप दिये मन प्राण तुम्हीं को

पद रत्नाकर पद ४५४

सौंप दिये मन प्राण तुम्हींको सौंप दिये ममता अभिमान।
जब जैसे, जी चाहे बरतो, अपनी वस्तु सर्वथा जान ॥

मत सकुचाओ मनकी करते, सोचो नहीं दूसरी बात।
मेरा कुछ भी रहा न अब तो, तुमको सब कुछ पूरा ज्ञात ॥

मान-अमान, दुःख-सुखसे अब मेरा रहा न कुछ सम्बन्ध |
तुम्हीं एक कैवल्य मोक्ष हो, तुमही केवल मेरे बन्ध ॥

रहूँ कहीं, कैसे भी, रहती बसी तुम्हारे अंदर नित्य ।
छूटे सभी अन्य आश्रय अब, मिटे सभी सम्बन्ध अनित्य ॥

एक तुम्हारे चरणकमल में हुआ विसर्जित सब संसार ।
रहे एक स्वामी बस, तुम ही, करो सदा स्वच्छन्द विहार ॥

आजु इन नयनन्हि निरखें श्याम

पद रत्नाकर पद ४३८

आजु इन नयनन्हि निरखें श्याम ।
निकले है मेरे मारग तैं नव नटवर अभिराम ॥

मो तन देखि मधुर मुसुकाने मोहन-दृष्टि ललाम।
ताही छिन तैं भए तिनहिं के तन-मन-मति-धन-धाम ॥

हौं बिनु मोल बिकी तिन चरनन्हि, रह्मौ न जग कछु काम ।
माधव-पद-पंकज पायौ नित मन-मधुकर बिश्राम ॥

मधुपुरी गवन करत जीवन-धन

पद रत्नाकर पद ३१७

मधुपुरी गवन करत जीवन-धन।
लै दाउए संग सुफलक-सुत, सुनि जरि उठी ज्वाल सब मन-तन ॥

भई बिकल, छायौ विषाद मुख, सिथिल भए सब अंग सु-सोभन ।
उर-रस जरयौ, रहे सूखे द्वय दृग अपलक, तम व्यापि गयौ घन ॥

लगे आय समुझावन प्रियतम, पै न सके, प्रगट्यौ विषाद मन ।
बानी रूकी, प्रिया लखि आरत, थिर तन भयौ, मनो बिनु चेतन ॥

भावी विरहानल प्रिय-प्यारी जरन लगे, बिसरे जग-जीवन।
कौन कहै महिमा या रति की, गति न जहाँ पावत सुर-मुनि-जन ॥

कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूँ

पद रत्नाकर पद १२७

कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूँ अब तेरे काज ।
पालन करने को आज्ञा तव मैं नियुक्त होता हूँ आज ॥

अन्तर में स्थित रहकर मेरी बागडोर पकड़े रहना।
निपट निरंकुश चञ्चल मन को सावधान करते रहना ।।

अन्तर्यामी को अन्तः स्थित देख सशङ्कित होवे मन ।
पाप-वासना उठते ही हो नाश लाज से वह जल-भुन ॥

जीवों का कलरव जो दिनभर सुनने में मेरे आवे ।
तेरा ही गुणगान जान मन प्रमुदित हो अति सुख पावे ॥

तू ही है सर्वत्र व्याप्त हरि ! तुझमें यह सारा संसार ।
इसी भावनासे अन्तर भर मिलूँ सभी से तुझे निहार ॥

प्रतिपल निज इन्द्रिय-समूह से जो कुछ भी आचार करूँ।
केवल तुझे रिझाने को, बस, तेरा ही व्यवहार करूँ ।।

मंद-मंद मुसकावत आवत

पद रत्नाकर पद २६९

मंद-मंद मुसकावत आवत ।
देखि दूर ही तें भइ बिहवल राधा-मन आनँद न समावत ॥

नव नीरद-घनस्याम-कांति कल, पीत बसन बर तन पर सोभित ।
मालति-कमल-माल उर राजत, भँवर-पाँति मँडरात सुलोभित ॥

सकल अंग चंदन अनुलेपित, रत्नाभरन-बिभूषित सुचि तन ।
सिखा सुसोभित मोर-पिच्छ, मनि-मुकुट सुमंडित, केस कृष्ण-घन ॥

मुख प्रसन्न मुनि-मानस-हर मृदुहास-छटा चहुँ ओर बिखेरत ।
चित्त-बित्त हर लेत निमिष महँ जा तन करि कटाच्छ दृग फेरत ॥

मुरली, क्रीड़ा-कमल प्रफुल्लित लिये एक कर, दूजे दरपन ।
देखि राधिका, करन लगी निज पुनः पुनः अर्पित कौं अरपन ॥

कृपा जो राधाजू की चहियै

पद रत्नाकर पद २३

कृपा जो राधाजू की चहियै।
तो राधाबर की सेवा में तन मन सदा उमहियै ।।

माधव की सुख-मूल राधिका, तिनके अनुगत रहियै ।
तिन के सुख-संपादन कौ पथ सूधौ अबिरत गहियै ॥

राधा पद-सरोज-सेवा में चित निज नित अरुझइयै ।
या बिधि स्याम-सुखद राधा-सेवा सौं स्याम रिझइयै ॥

रीझत स्याम, राधिका रानी की अनुकंपा पइयै ।
निभृत निकुंज जुगलसेवा कौ सरस सुअवसर लहियै ॥

निभृत निकुंज - मध्य

पद रत्नाकर पद २३५

निभृत-निकुञ्ज-मध्य निशि-रत श्रीराधामाधव मधुर विलास ।
मधुर दिव्य लीला-प्रमत्त वर बहा रहे निर्मल निर्यास ॥

बरस रही रस सुधा मधुर शुचि छाया सब दिशि अति उल्लास ।
लीलामय कर रहे निरन्तर नव-नव लीला ललित प्रकाश ॥

सेवामयी परम चतुरा अति स्वसुख-वासनाहीन ललाम ।
यथायोग साधन-सामग्री वे प्रस्तुत करतीं, निष्काम ॥

‘मधुर युगल हों परम सुखी’ बस, केवल यह इच्छा अभिराम ।
निरख रहीं पवित्र नेत्रोंसे युगल मधुर लीला अविराम ॥

जय वसुदेव-देवकीनन्दन

पद रत्नाकर पद २५

जय वसुदेव-देवकीनन्दन, जयति यशोदा-नंदनन्दन ।
जयति असुर-दल-कंदन, जय-जय प्रेमीजन मानस-चन्दन ॥

बाँकी भौहें, तिरछी चितवन, नलिन-विलोचन रसवर्षी ।
बदन मनोहर मदन-दर्प-हर परमहंस-मुनि-मन-कर्षी ॥

अरूण अधर धर मुरलि मधुर मुसकान मंजु मृदु सुधिहारी ।
भाल तिलक, घुँघराली अलकैं, अलिकुल-मद-मर्दनकारी ॥

गुंजाहार, सुशोभित कौस्तुभ सुरभित सुमनों की माला।
रूप-सुधा-मद पी-पी सब सम्मोहित ब्रजजन-ब्रजबाला ॥

जय वसुदेव-देवकीनंदन, जयति यशोदा-नंदनन्दन ।
जयति असुर-दल कंदन, जय जय प्रेमीजन मानस-चन्दन ॥