भूमिका –
परम पूज्य बाबूजी” (नित्य लीलालीन श्रद्धेय बाबू हनुमानप्रसाद पोद्वार “भाईजी”) की एक पुस्तकमाला ‘लोक परलोक का सुधार’ अथवा काम के पत्र’ नाम से गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित है। उक्त पुस्तकमाला के भाग ४, पत्र संख्या १६ में आपने प्रत्येक कल्याणकामी मनुष्य के लिये दो उपदेश लिखे हैं। प्रथम तो यह कि प्रतिदिन किसी समय घर के सब लोग मिलकर कम-से-कम पंद्रह मिनट श्रीभगवन्नाम का कीर्तन किया करें। दूसरा, प्रतिदिन कम-से-कम एक घंटे के लिये श्रीमद्भागवत, श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भगवद्गीता आदि धर्मग्रन्थों, संत व भक्त-चरित्रों तथा महापुरुषों की जीवनियों को पढ़कर उनका पारिवारिक स्वाध्याय व श्रवण करें। (गीताप्रेस, गोरखपुर की कृपामयी अनुमति से परम पूज्य “बाबूजी” का यह उपदेश ‘आनन्द यात्रा’ भाग-२ (‘गृहस्थाश्रम-धर्म’) में लेख सं० २६ के बिन्द्र (क) में प्रस्तुत किया गया है॥)
परम पूज्य ‘बाबूजी’ के इस उपदेश के अनुपालन में पृज्य ‘नानाजी’ ने अपने से जुड़े गृहस्थ-परिवारों को प्रेरित किया कि पारिवारिक सदस्यों, स्वजनों व इष्ट-मित्रों के साथ मिलकर स्वाध्याय-सत्संग की नियमित गोष्ठियों का आयोजन करना तथा उनके स॑चालन में योगदान देना अत्यन्त आवश्यक है। पाक्षिक संदेश की सामान्य प्रणाली से हटकर निम्नांकित संदेश का आकार विस्तृत था जिसमें पूज्य नानाजी द्वारा इन पारिवारिक सत्संग गोष्ठियों के संचालन के विषय में मार्गदर्शन प्रदान किया गया था। इसके अतिरिक्त, मई २०११ में पूज्य नानाजी ने पारिवारिक गोष्ठी में सम्मिलित होने वाले सदस्यों के विषय में भी मार्गदर्शन के कुछ बिन्दु प्रस्तुत किये थे। पाठकों की सुविधा के लिये ये दोनों संदेश इस लेख के भाग (क) और (ख) के रूप में प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
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