गोष्ठी आयोजित करने के विषय में मार्गदर्शन के कुछ बिन्दु
१. यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि गोष्ठी के सदस्यों ने माँसाहार, अण्डाहार, धूम्रपान और मदिरापान का पूर्ण रूप से त्याग किया है। इस विषय में “आनन्द-यात्रा” के प्रथम पुष्प के उपयुक्त लेखों IV का (२०) व (२१) के आधार पर उनसे इस प्रकार जीवन शुद्ध रखने का निवेदन किया जा सकता है।
२. परमात्मा एवं उनके स्वरूप के चार मुख्य अंगों पर सदस्यों को अपना विश्वास दृढ़ कर लेना चाहिए – (आनन्द यात्रा, प्रथम पुष्प, पृ० १३, प्र० ७ देखें)। साथ ही भगवान् की वाणी अर्थात् धर्मग्रन्थों एवं संत-महात्माओं के उन पर प्रकाश डालने वाले वचनों में श्रद्धा होनी चाहिये कि इनके पालन से ही कल्याण होना सम्भव है। इन ग्रन्थों व संत-साहित्य में वर्णित आज्ञाओं को मानने का दृढ़ निश्चय आवश्यक है। (आनन्द यात्रा, प्रथम पुष्प, पृ० १९-१३, प्र० ४ से ६ देखें)।
३. गोष्ठी में सम्मिलित होने के लिए जो सदस्य इच्छुक हैं, उनसे यह निवेदन अवश्य करना चाहिए कि वे अपने परिवार के अन्य सदस्यों को भी साथ लाएँ। केवल अकेले गोष्ठी में सम्मिलित होने से यह सम्भावना होती है कि गोष्ठी में वर्णित आध्यात्मिक विचारधारा और घर के अन्य सदस्यों की मान्यताओं में मेल न हो। ऐसे में गोष्ठी के सदस्यों और अन्य पारिवारिक स्वजनों के बीच मन-मुटाव और क्लेश का प्रवेश हो सकता है। इसलिए परिवार सहित गोष्ठी में सम्मिलित होना आवश्यक है, जिससे सभी सदस्य एक ही लक्ष्य भगवत्प्राप्ति की ओर बढ़ने के लिए एक दूसरे को प्रोत्साहित करें। परिवार से तात्पर्य निकटतम् पारिवारिकजनों का है, जैसे माता-पिता और सन्तान।
४. यदि परिवार सहित सम्मिलित होना किसी सदस्य के लिये सम्भव न हो, तो श्रेयस्कर यही होगा कि वे सदस्य पहले अपने घर पर ही अपने स्वाध्याय और जप को नियमित करें। यथासम्भव परिवार के सभी सदस्यों के खान-पान को शुद्ध बनाने की चेष्टा करें | किसी से द्वेष बिलकुल न करें। परिवार सहित शुद्ध साधन्निष्ठ जीवन जीने के लिए भगवान्नाम जप और भगवच्चिन्तन के माध्यम से प्रभु के चरणों में प्रार्थना अर्पित करें, और यह विश्वास करें कि सर्वशक्तिमान परमात्मा उनकी रक्षा अवश्य करेंगे, भले ही इस रक्षा की विधि समझ में न आए (इस विषय में “आस्तिकता”- सार के तीनों लेख देखें)। चेष्टा यह करें कि एक महीने में प्रतिदिन १६ माला षोडशाक्षर मंत्र का नियम स्थिर करें और 3 महीने में प्रतिदिन ३२ माला करने लगें। नाम-जप के लिए निष्ठापूर्वक समय निकालना अत्यावश्यक है। यदि मन में यह भाव है कि जब समय मिलेगा तब जप करेंगे, तो इससे न तो जप में वृद्धि होगी, न परिवार के अन्य सदस्यों पर वांछित प्रभाव पड़ेगा। पूज्य बाबा के उपरोक्त वचनों का पालन करते हुए भगवान् की शरणागति, भगवन्नाम-जप, भगवच्चिन्तन और कातर प्रार्थना से करुणामय प्रभु की प्रेमभरी कृपा सहज रूप से ऐसी परिस्थिति का निर्माण कर देती है जिस में सभी का परम कल्याण निहित हो।
५. यह ध्यान रखें कि गोष्ठी में गीता के अध्ययन से जो भी भगवान् के आदेश प्राप्त हों, उनका पालन करना तत्क्षण आरम्भ हो जाए। उदाहरणार्थ – अध्याय २ के १३वें श्लोक में भगवान् ने उपदेश करते हुए यह कहा कि बुद्धिमान व्यक्ति शोक नहीं करते । यह पढ़ते ही यह निश्चय दृढ़ हो जाना चाहिए कि अब जीवन में शोक का कोई स्थान नहीं रहेगा। इस प्रकार के जो भी उपदेश प्राप्त हों, उन पर पूर्ण निष्ठा के साथ प्रयास होना चाहिए, भले ही सांसारिक मान्यताएँ इसके विरुद्ध हों।
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