अध्याय ०७: श्लोक
अध्याय ०८: श्लोक
अध्याय ०९: श्लोक
कंठस्थ करने योग्य गीता के कुछ श्लोक
मनुष्य-जीवन का लक्ष्य भगवान् की भक्ति द्वारा और उन पर दृढ़ विश्वास रखते हुए भगवत्-प्राप्ति करना है। गीता के नित्यप्रति अध्ययन और उसके उपदेश को जीवन में धारण करने के लिए भगवान् का आश्रय लेने से यह उद्देश्य सरलता से प्राप्त हो जाता है। परन्तु कभी-कभी सांसारिक परिस्थितियों से चित्त विचलित हो जाता है और मनुष्य साधनपथ से डिगने लगता है। ऐसी दशा में चित्त को स्थिर रखने के लिए कुछ चुने हुए श्लोक नीचे लिखे गये हैं जिनके बार-बार अर्थ सहित स्मरण करने से भगवत्-कृपा का प्रकाश दीखने लगता है और प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति चित्त को डिगाने नहीं पाती। यह स्मरण रखें कि भगवान् सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान्, सर्वान्तर्यामी और सबके सुहृद हैं एवं उनका प्रत्येक विधान मंगलमय है।
-उपरोक्त पंक्तियाँ नानाजी की पुस्तक ‘श्रीमद्भगवद्गीता जीवन-विज्ञान’ से ली गयीं है।परिस्थिति एवं उससे सम्बंधित महत्वपूर्ण श्लोक
क्रमांक | परिस्थिति | अध्याय | श्लोक |
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1 | अपने उद्धार के लिए और एकान्त में भगवान् के चिन्तन हेतु | 08 | 14 |
2 | धारण-पोषण की समस्या-निवारण हेतु | 09 | 22 |
3 | अभाव में जीवनयापन की क्षमता हेतु | 09 | 22 |
4 | दुराचरण या पाप के प्रायश्चित हेतुे | 09 | 3031 |