शुभ दीपावली २०२०

‘हृदय में रामराज्य वरण करें’ श्रीरामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में संत-कवि श्री तुलसीदासजी ने रामराज्य का वर्णन इस प्रकार आरम्भ किया है –   राम राज बैठें त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।। बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।। “श्रीरामचन्द्रजी के राज्य पर प्रतिष्ठित होने पर तीनों लोक हर्षित हो गए, उनके […]

Auspicious Deepawali 2020

‘Let us establish Ramarajya in our hearts’ In the Uttarakanda of Shri Ramacharitamanasa, the saint-poet Shri Tulasidasji begins the description of Ramarajya  with these words: राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।। बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।। Raama raaja baithein trailokaa | Harashita bhaye gaye saba sokaa || […]

नाम जप अनुष्ठान २०२०

श्री हरिः हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।। आदरणीय जपकर्ता, जय जय राधे श्याम । गीताप्रेस गोरखपुर की मासिक पत्रिका “कल्याण” में प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा से चैत्र पूर्णिमा तक उपरोक्त षोडशाक्षरमंत्र जप के वार्षिक अनुष्ठान की अपील प्रकाशित की जाती है। श्रीभगवन्नाम जप के इस […]

शुभ दीपावली (2019)

।।श्री राम ।। शुभ दीपावली २०१९ के लिये मंगल सन्देश   दीप-ज्योति जाग्रत् कर दे शुभ दिव्य भागवत्‌-ज्योति अपार। नित्य दिव्य सुख-शान्ति, प्रीति हरि-पद हो जीवन के आधार।। (पद रत्नाकर, पद सं० १५५०)   तो आइए, परम पूज्य “बाबूजी’ (श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी) के द्वारा व्यक्त इन दिव्य भावों से अपने मन को एकाकार […]

नववर्ष सन्देश 2019

।। राधा ।। ।। नववर्ष माधुर्यमय हो ।। श्रीयुगल सरकार, पूज्य संतों व गुरुजनों की असीम कृपा से हम पुनः एक नवीन वर्ष के स्वागत हेतु प्रस्तुत हैं। भगवान्‌ द्वारा प्रदान किये गये बुद्धि तत्त्व के सदुपयोग से इस अमूल्य मनुष्य-जीवन रूपी सरगम के आरोहात्मक व अवरोहात्मक अनुभवों को हम मधुर बना सकते हैं। इसके […]

New Year 2019 Message

— Shri Radha — || May the new year bring sweet harmony || With the loving grace of the Almighty and the eternal blessings of revered Saints and our Gurujan (Spiritual Guides), we have the opportunity to welcome the new year with renewed zeal and Fervor! When used wisely, the intellect, gifted to us by the Lord, […]

New Year 2018 Message

Auspicious New Year Wishes 2018 बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।। सतसंगत मुद मंगल मूला। सोइ फल सिधि सब साधन फूला।। In the absence of Satsang (spiritual discourses by revered saints on the teachings of the holy scriptures), discerning wisdom doesn’t awaken. Without the grace of Lord Sri Ram, easy […]

शुभ दीपावली (2017)

।। श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ।।   दीपावली के अवसर पर चौपड़ (जुआ) खेलने की प्राचीन परम्परा भारत में चली आ रही है। खेलों में इसे अत्यन्त निकृष्ट समझा जाता है क्योंकि इस खेल में मनुष्य बहुधा अपना सर्वस्व भी हार जाता है। श्रीमद्‌भगवद्‌गीता के १०वें अध्याय के श्लोक सं० ३६ में भगवान्‌ ने घोषणा की है […]

राधा निकुंज

पूज्य नानाजी-नानीजी का गृहस्थाश्रम

सौंप दिये मन प्राण तुम्हीं को

पद रत्नाकर पद ४५४

सौंप दिये मन प्राण तुम्हींको सौंप दिये ममता अभिमान।
जब जैसे, जी चाहे बरतो, अपनी वस्तु सर्वथा जान ॥

मत सकुचाओ मनकी करते, सोचो नहीं दूसरी बात।
मेरा कुछ भी रहा न अब तो, तुमको सब कुछ पूरा ज्ञात ॥

मान-अमान, दुःख-सुखसे अब मेरा रहा न कुछ सम्बन्ध |
तुम्हीं एक कैवल्य मोक्ष हो, तुमही केवल मेरे बन्ध ॥

रहूँ कहीं, कैसे भी, रहती बसी तुम्हारे अंदर नित्य ।
छूटे सभी अन्य आश्रय अब, मिटे सभी सम्बन्ध अनित्य ॥

एक तुम्हारे चरणकमल में हुआ विसर्जित सब संसार ।
रहे एक स्वामी बस, तुम ही, करो सदा स्वच्छन्द विहार ॥

आजु इन नयनन्हि निरखें श्याम

पद रत्नाकर पद ४३८

आजु इन नयनन्हि निरखें श्याम ।
निकले है मेरे मारग तैं नव नटवर अभिराम ॥

मो तन देखि मधुर मुसुकाने मोहन-दृष्टि ललाम।
ताही छिन तैं भए तिनहिं के तन-मन-मति-धन-धाम ॥

हौं बिनु मोल बिकी तिन चरनन्हि, रह्मौ न जग कछु काम ।
माधव-पद-पंकज पायौ नित मन-मधुकर बिश्राम ॥

मधुपुरी गवन करत जीवन-धन

पद रत्नाकर पद ३१७

मधुपुरी गवन करत जीवन-धन।
लै दाउए संग सुफलक-सुत, सुनि जरि उठी ज्वाल सब मन-तन ॥

भई बिकल, छायौ विषाद मुख, सिथिल भए सब अंग सु-सोभन ।
उर-रस जरयौ, रहे सूखे द्वय दृग अपलक, तम व्यापि गयौ घन ॥

लगे आय समुझावन प्रियतम, पै न सके, प्रगट्यौ विषाद मन ।
बानी रूकी, प्रिया लखि आरत, थिर तन भयौ, मनो बिनु चेतन ॥

भावी विरहानल प्रिय-प्यारी जरन लगे, बिसरे जग-जीवन।
कौन कहै महिमा या रति की, गति न जहाँ पावत सुर-मुनि-जन ॥

कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूँ

पद रत्नाकर पद १२७

कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूँ अब तेरे काज ।
पालन करने को आज्ञा तव मैं नियुक्त होता हूँ आज ॥

अन्तर में स्थित रहकर मेरी बागडोर पकड़े रहना।
निपट निरंकुश चञ्चल मन को सावधान करते रहना ।।

अन्तर्यामी को अन्तः स्थित देख सशङ्कित होवे मन ।
पाप-वासना उठते ही हो नाश लाज से वह जल-भुन ॥

जीवों का कलरव जो दिनभर सुनने में मेरे आवे ।
तेरा ही गुणगान जान मन प्रमुदित हो अति सुख पावे ॥

तू ही है सर्वत्र व्याप्त हरि ! तुझमें यह सारा संसार ।
इसी भावनासे अन्तर भर मिलूँ सभी से तुझे निहार ॥

प्रतिपल निज इन्द्रिय-समूह से जो कुछ भी आचार करूँ।
केवल तुझे रिझाने को, बस, तेरा ही व्यवहार करूँ ।।

मंद-मंद मुसकावत आवत

पद रत्नाकर पद २६९

मंद-मंद मुसकावत आवत ।
देखि दूर ही तें भइ बिहवल राधा-मन आनँद न समावत ॥

नव नीरद-घनस्याम-कांति कल, पीत बसन बर तन पर सोभित ।
मालति-कमल-माल उर राजत, भँवर-पाँति मँडरात सुलोभित ॥

सकल अंग चंदन अनुलेपित, रत्नाभरन-बिभूषित सुचि तन ।
सिखा सुसोभित मोर-पिच्छ, मनि-मुकुट सुमंडित, केस कृष्ण-घन ॥

मुख प्रसन्न मुनि-मानस-हर मृदुहास-छटा चहुँ ओर बिखेरत ।
चित्त-बित्त हर लेत निमिष महँ जा तन करि कटाच्छ दृग फेरत ॥

मुरली, क्रीड़ा-कमल प्रफुल्लित लिये एक कर, दूजे दरपन ।
देखि राधिका, करन लगी निज पुनः पुनः अर्पित कौं अरपन ॥

कृपा जो राधाजू की चहियै

पद रत्नाकर पद २३

कृपा जो राधाजू की चहियै।
तो राधाबर की सेवा में तन मन सदा उमहियै ।।

माधव की सुख-मूल राधिका, तिनके अनुगत रहियै ।
तिन के सुख-संपादन कौ पथ सूधौ अबिरत गहियै ॥

राधा पद-सरोज-सेवा में चित निज नित अरुझइयै ।
या बिधि स्याम-सुखद राधा-सेवा सौं स्याम रिझइयै ॥

रीझत स्याम, राधिका रानी की अनुकंपा पइयै ।
निभृत निकुंज जुगलसेवा कौ सरस सुअवसर लहियै ॥

निभृत निकुंज - मध्य

पद रत्नाकर पद २३५

निभृत-निकुञ्ज-मध्य निशि-रत श्रीराधामाधव मधुर विलास ।
मधुर दिव्य लीला-प्रमत्त वर बहा रहे निर्मल निर्यास ॥

बरस रही रस सुधा मधुर शुचि छाया सब दिशि अति उल्लास ।
लीलामय कर रहे निरन्तर नव-नव लीला ललित प्रकाश ॥

सेवामयी परम चतुरा अति स्वसुख-वासनाहीन ललाम ।
यथायोग साधन-सामग्री वे प्रस्तुत करतीं, निष्काम ॥

‘मधुर युगल हों परम सुखी’ बस, केवल यह इच्छा अभिराम ।
निरख रहीं पवित्र नेत्रोंसे युगल मधुर लीला अविराम ॥

जय वसुदेव-देवकीनन्दन

पद रत्नाकर पद २५

जय वसुदेव-देवकीनन्दन, जयति यशोदा-नंदनन्दन ।
जयति असुर-दल-कंदन, जय-जय प्रेमीजन मानस-चन्दन ॥

बाँकी भौहें, तिरछी चितवन, नलिन-विलोचन रसवर्षी ।
बदन मनोहर मदन-दर्प-हर परमहंस-मुनि-मन-कर्षी ॥

अरूण अधर धर मुरलि मधुर मुसकान मंजु मृदु सुधिहारी ।
भाल तिलक, घुँघराली अलकैं, अलिकुल-मद-मर्दनकारी ॥

गुंजाहार, सुशोभित कौस्तुभ सुरभित सुमनों की माला।
रूप-सुधा-मद पी-पी सब सम्मोहित ब्रजजन-ब्रजबाला ॥

जय वसुदेव-देवकीनंदन, जयति यशोदा-नंदनन्दन ।
जयति असुर-दल कंदन, जय जय प्रेमीजन मानस-चन्दन ॥