नाम जप अनुष्ठान २०२४

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।। आदरणीय सदस्यों, जय जय राधे श्याम। गीताप्रेस गोरखपुर की मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ में प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा से चैत्र पूर्णिमा तक उपरोक्त षोडशाक्षर मंत्र के वार्षिक नाम-जप अनुष्ठान की अपील प्रकाशित की जाती है। इस अनुष्ठान में परम पूज्य ‘बाबूजी’ […]

Naam Japa Anushthan 2024

Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare | Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare || Respected members Jai Jai Radhe Shyam Every year, the monthly magazine ‘Kalyaan’ by Gitapress, Gorakhpur publishes an appeal for participation in the annual naam-japa anushthaan of the above shodash-akshar mantra from Kartik Poornima till Chaitr Poornima. This […]

Happy Deepawali 2024
Awaken the light of God in your heart

The radiant beauty of the Deepawali festival reminds us that God’s natural inclination is towards illumination and joy. On this festival, He encourages us to adorn our hearts with these sentiments and to firmly abandon the elements that hinder them. Likes-dislikes, ego-attachment, fear-anger etc. are the hindering elements due to which sadness, worry, discouragement and […]

दीपावली संदेश २०२४
हृदय में भगवान् की ज्योति जगा लें

दीपावली पर्व का उज्ज्वल सौंदर्य हमें स्मरण दिलाता है कि प्रभु की स्वाभाविक रुचि प्रकाश और उत्फुल्लता के भावों में है। इस पर्व पर वे हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने हृदय को इन्हीं भावों से शृंगारित करें और इनके बाधक तत्त्वों को दृढ़ता से त्याग दें। राग-द्वेष, अहंकार-आसक्ति, भय-क्रोध आदि ही वे बाधक […]

Happy Diwali 2023 – From darkness towards light

With the immense blessings of Shri Yugal Sarkar, param pujya Shri Hanumanprasad Poddar ‘Babuji’, param pujya Shri Radha Baba and all the revered saints, all of us are inspired on the festival of Deepawali to introspect as to how do we make our hearts compassionate, so that merciful Sri SitaRamji can come and reside there? […]

शुभ दीपावली २०२३ – अंधकार से प्रकाश की ओर

श्री युगल सरकार, परम पूज्य श्रीहनुमानप्रसाद पोद्दार ‘भाईजी’, परम पूज्य श्रीराधा बाबा व सभी पूज्य संतों की अत्यंत कृपा से दीपावली के पर्व पर हम सभी को यह प्रेरणा होती है कि हम अपने हृदय का आसन अत्यंत कोमल कैसे बनाएँ, जिससे करुणामय श्रीसीतारामजी उस पर आकर विराज सकें? प्रभु के आगमन पथ को सुंदर, […]

नववर्ष २०२३ – एक स्वर्णिम अवसर

भगवान्‌ अनन्त कृपा, प्रेम और आनन्द के धाम हैं – और उनकी ओर बढ़ने की चेष्टा हम सब अपने-अपने स्तर पर कर ही रहे हैं। परन्तु इस मार्ग पर हम अपनी प्रगति का आकलन कैसे करें? यदि इसका मापदण्ड हम याद रखें, तब आने वाले वर्ष का सदुपयोग सर्वोत्तम रीति से कर सकेंगे। ‘श्रीमद्भगवद्गीता : […]

New Year 2023 – A golden opportunity

The Lord is the abode of infinite grace, love and bliss – and all of us are making efforts at our individual level to move towards Him. But how do we evaluate our progress on this path? If we keep the criterion for this in mind, then we will be able to utilize the coming […]

राधा निकुंज

पूज्य नानाजी-नानीजी का गृहस्थाश्रम

सौंप दिये मन प्राण तुम्हीं को

पद रत्नाकर पद ४५४

सौंप दिये मन प्राण तुम्हींको सौंप दिये ममता अभिमान।
जब जैसे, जी चाहे बरतो, अपनी वस्तु सर्वथा जान ॥

मत सकुचाओ मनकी करते, सोचो नहीं दूसरी बात।
मेरा कुछ भी रहा न अब तो, तुमको सब कुछ पूरा ज्ञात ॥

मान-अमान, दुःख-सुखसे अब मेरा रहा न कुछ सम्बन्ध |
तुम्हीं एक कैवल्य मोक्ष हो, तुमही केवल मेरे बन्ध ॥

रहूँ कहीं, कैसे भी, रहती बसी तुम्हारे अंदर नित्य ।
छूटे सभी अन्य आश्रय अब, मिटे सभी सम्बन्ध अनित्य ॥

एक तुम्हारे चरणकमल में हुआ विसर्जित सब संसार ।
रहे एक स्वामी बस, तुम ही, करो सदा स्वच्छन्द विहार ॥

आजु इन नयनन्हि निरखें श्याम

पद रत्नाकर पद ४३८

आजु इन नयनन्हि निरखें श्याम ।
निकले है मेरे मारग तैं नव नटवर अभिराम ॥

मो तन देखि मधुर मुसुकाने मोहन-दृष्टि ललाम।
ताही छिन तैं भए तिनहिं के तन-मन-मति-धन-धाम ॥

हौं बिनु मोल बिकी तिन चरनन्हि, रह्मौ न जग कछु काम ।
माधव-पद-पंकज पायौ नित मन-मधुकर बिश्राम ॥

मधुपुरी गवन करत जीवन-धन

पद रत्नाकर पद ३१७

मधुपुरी गवन करत जीवन-धन।
लै दाउए संग सुफलक-सुत, सुनि जरि उठी ज्वाल सब मन-तन ॥

भई बिकल, छायौ विषाद मुख, सिथिल भए सब अंग सु-सोभन ।
उर-रस जरयौ, रहे सूखे द्वय दृग अपलक, तम व्यापि गयौ घन ॥

लगे आय समुझावन प्रियतम, पै न सके, प्रगट्यौ विषाद मन ।
बानी रूकी, प्रिया लखि आरत, थिर तन भयौ, मनो बिनु चेतन ॥

भावी विरहानल प्रिय-प्यारी जरन लगे, बिसरे जग-जीवन।
कौन कहै महिमा या रति की, गति न जहाँ पावत सुर-मुनि-जन ॥

कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूँ

पद रत्नाकर पद १२७

कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूँ अब तेरे काज ।
पालन करने को आज्ञा तव मैं नियुक्त होता हूँ आज ॥

अन्तर में स्थित रहकर मेरी बागडोर पकड़े रहना।
निपट निरंकुश चञ्चल मन को सावधान करते रहना ।।

अन्तर्यामी को अन्तः स्थित देख सशङ्कित होवे मन ।
पाप-वासना उठते ही हो नाश लाज से वह जल-भुन ॥

जीवों का कलरव जो दिनभर सुनने में मेरे आवे ।
तेरा ही गुणगान जान मन प्रमुदित हो अति सुख पावे ॥

तू ही है सर्वत्र व्याप्त हरि ! तुझमें यह सारा संसार ।
इसी भावनासे अन्तर भर मिलूँ सभी से तुझे निहार ॥

प्रतिपल निज इन्द्रिय-समूह से जो कुछ भी आचार करूँ।
केवल तुझे रिझाने को, बस, तेरा ही व्यवहार करूँ ।।

मंद-मंद मुसकावत आवत

पद रत्नाकर पद २६९

मंद-मंद मुसकावत आवत ।
देखि दूर ही तें भइ बिहवल राधा-मन आनँद न समावत ॥

नव नीरद-घनस्याम-कांति कल, पीत बसन बर तन पर सोभित ।
मालति-कमल-माल उर राजत, भँवर-पाँति मँडरात सुलोभित ॥

सकल अंग चंदन अनुलेपित, रत्नाभरन-बिभूषित सुचि तन ।
सिखा सुसोभित मोर-पिच्छ, मनि-मुकुट सुमंडित, केस कृष्ण-घन ॥

मुख प्रसन्न मुनि-मानस-हर मृदुहास-छटा चहुँ ओर बिखेरत ।
चित्त-बित्त हर लेत निमिष महँ जा तन करि कटाच्छ दृग फेरत ॥

मुरली, क्रीड़ा-कमल प्रफुल्लित लिये एक कर, दूजे दरपन ।
देखि राधिका, करन लगी निज पुनः पुनः अर्पित कौं अरपन ॥

कृपा जो राधाजू की चहियै

पद रत्नाकर पद २३

कृपा जो राधाजू की चहियै।
तो राधाबर की सेवा में तन मन सदा उमहियै ।।

माधव की सुख-मूल राधिका, तिनके अनुगत रहियै ।
तिन के सुख-संपादन कौ पथ सूधौ अबिरत गहियै ॥

राधा पद-सरोज-सेवा में चित निज नित अरुझइयै ।
या बिधि स्याम-सुखद राधा-सेवा सौं स्याम रिझइयै ॥

रीझत स्याम, राधिका रानी की अनुकंपा पइयै ।
निभृत निकुंज जुगलसेवा कौ सरस सुअवसर लहियै ॥

निभृत निकुंज - मध्य

पद रत्नाकर पद २३५

निभृत-निकुञ्ज-मध्य निशि-रत श्रीराधामाधव मधुर विलास ।
मधुर दिव्य लीला-प्रमत्त वर बहा रहे निर्मल निर्यास ॥

बरस रही रस सुधा मधुर शुचि छाया सब दिशि अति उल्लास ।
लीलामय कर रहे निरन्तर नव-नव लीला ललित प्रकाश ॥

सेवामयी परम चतुरा अति स्वसुख-वासनाहीन ललाम ।
यथायोग साधन-सामग्री वे प्रस्तुत करतीं, निष्काम ॥

‘मधुर युगल हों परम सुखी’ बस, केवल यह इच्छा अभिराम ।
निरख रहीं पवित्र नेत्रोंसे युगल मधुर लीला अविराम ॥

जय वसुदेव-देवकीनन्दन

पद रत्नाकर पद २५

जय वसुदेव-देवकीनन्दन, जयति यशोदा-नंदनन्दन ।
जयति असुर-दल-कंदन, जय-जय प्रेमीजन मानस-चन्दन ॥

बाँकी भौहें, तिरछी चितवन, नलिन-विलोचन रसवर्षी ।
बदन मनोहर मदन-दर्प-हर परमहंस-मुनि-मन-कर्षी ॥

अरूण अधर धर मुरलि मधुर मुसकान मंजु मृदु सुधिहारी ।
भाल तिलक, घुँघराली अलकैं, अलिकुल-मद-मर्दनकारी ॥

गुंजाहार, सुशोभित कौस्तुभ सुरभित सुमनों की माला।
रूप-सुधा-मद पी-पी सब सम्मोहित ब्रजजन-ब्रजबाला ॥

जय वसुदेव-देवकीनंदन, जयति यशोदा-नंदनन्दन ।
जयति असुर-दल कंदन, जय जय प्रेमीजन मानस-चन्दन ॥