”कर्त्तव्यपालन में अत्यन्त सावधान रहें – अपनी हर परिस्थिति में प्रसन्न रहें”
१. वर्तमान में परिस्थितिवश जो कुछ हमारे साथ होता है, वह उस कर्म का फल है जो भूतकाल में कभी हमने किसी अन्य के साथ ठीक कर्तव्य समझकर किया है। आज जो कुछ हम ठीक कर्तव्य समझकर कर रहे हैं, उसका फल हमें भविष्य में प्राप्त होगा।
२. हमारे कर्म के फल का विधान भगवान् करते हैं। अर्थात् वह फल किस समय, किस विधि से तथा किसके द्वारा प्राप्त हो यह विधान वे करते हैं। विधान करते समय वे इस बात का पूर्ण विचार रखते हैं कि उस फल का उपयोग हम वर्तमान के कर्तव्य-पालन में कर लें। भगवत्प्राप्ति के एकमात्र लक्ष्य के सिद्ध करने के लिये अनुकूल परिस्थिति हमें सहायता करती है। प्रतिकूल परिस्थिति हमें उस मार्ग पर जाने से बचाती है जो मार्ग लक्ष्य प्राप्ति के विरुद्ध हो। अतः वर्तमान में कर्तव्यपालन करते समय हमें अत्यन्त सावधान रहना आवश्यक है।
३. उपरोक्त कारणों से वर्तमान की हर परिस्थिति हमारी लक्ष्य प्राप्ति में हर प्रकार से सहायक है। अतः हम अपनी हर परिस्थिति में प्रसन्न रहें।
४. वर्तमान में हम हर परिस्थिति में प्रसन्न रहें, इसके लिये यह आवश्यक है कि हम वर्तमान समय का उपयोग केवल भगवद्भक्ति के साधन में ही करें। इसका सबसे सरल उपाय यह है कि हम हर समय भगवान् का स्मरण करते हुए सब काम करें(गीता ८/७)।
५. यह याद रखें कि वर्तमान में प्राप्त होने वाला अनुकूल अथवा प्रतिकूल प्रारब्ध हमारे पूर्व काल के शुभ अथवा अशुभ कर्मों का फल है। किन्तु वर्तमान में भक्ति का साधन करने से प्रारब्ध का वेग समाप्त हो जाता है तथा उसके स्थान पर भगवान् का नया विधान लागू हो जाता है जो हर प्रकार से हमारे लिये कल्याणकारी ही होता है।
(नानाजी)
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