॥ राधा ॥
हम मृत्यु-रूपी फाँसी से सदा के लिए छूटने का दृढ़ संकल्प लें।
श्री युगल सरकार, पूज्य संतों व गुरुजनों के असीम प्रेम से हम पुनः नवीन वर्ष के स्वागत हेतु प्रस्तुत हुए हैं। बीते दो वर्षों में कोविड के कारण पूरा जनमानस शरीर-नाश के भय एवं प्रियजनों के वियोग के दुःख से अक्रान्त है।
इस दुःख और भय के स्थायी निवारण हेतु भगवान् ने स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान किया है। गीता के अध्याय २ के श्लोक सं १२ एवं १३ में भगवान कहते हैं कि वर्तमान शरीर केवल थोड़े समय के लिए ही दिखाई देता है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि शरीर के अप्रकट हो जानेपर आत्मा का भी नाश हो जाएगा। आत्मा का जीवन अनन्त है पर कुछ समय के लिए शरीर द्वारा उसका प्राकट्य होता है। जैसे शरीर बालकपन में छोटा, यौवन में विकास को और वृद्धावस्था होने पर क्षय को प्राप्त होता है, इसी प्रकार एक शरीर का त्यागना और दूसरे शरीर की प्राप्ति भी इसी क्रम का अंग है। परन्तु इन सब बदलाव में आत्मा (हम) का नाश नहीं होता, वह तो सदैव विद्यमान रहती है।
मनुष्य-जीवन अल्प होते हुए भी हमारे समक्ष यह सुन्दर अवसर प्रस्तुत करता है कि थोड़े से प्रयास से हम जन्म-मरण के दुःख से छूट जाएँ और सदैव के लिए सुखी हो जाएँ। जहाँ कोई दुःख न हो, प्रियजन से वियोग की कोई दुराशा न हो। केवल सुख, आनन्द और प्रकाश हो।
इस विषय में भगवान् गीता अ० १८ श्लोक ६५ में स्पष्ट निर्देश देते हुए कहते हैं-
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥
मुझमें ही मन वाले मेरे भक्त और मेरा ही पूजन करने वाले हो जाओ तथा मुझे ही प्रणाम करो (फ़िर तुम) मुझे ही प्राप्त हो जाओगे – यह मैं तुमसे सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ, (क्योंकि तुम) मेरे अत्यन्त प्रिय हो।
भगवान् की इन आज्ञाओं को व्यावहारिक जीवन में कैसे उतारा जाए, यह निम्नांकित बिन्दुओं से स्पष्ट हो जाएगा-
१. प्रतिदिन नियमित रूप से सद्ग्रन्थों (श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीरामचरितमानस, श्रीमदभागवत महापुराण) का पाठ, सन्तों के वचनों को श्रद्धापूर्वक सुनना और अपने मन को भक्ति भाव से ओत-प्रोत करना।
२. भगवान् के प्रत्येक विधान को मंगलकारी समझते हुए सब परिस्थितियों में उन पर ही निर्भर रहने की चेष्टा करना एवं हर व्यक्ति और परिस्थिति में उनको देखना।
३. प्रतिदिन कम से कम १६ माला षोडश मंत्र का नाम जप।
४. हर शास्त्र-विहित कर्म (सत्कर्म) केवल उनकी शक्ति से, उनकी प्रीति के लिए और फल उन्हीं को समर्पित करना।
५. भगवान् के चित्र, मूर्ति, चरण-चिन्ह और सत्शास्त्रों को शरीर एवं मन से प्रणाम कर मन में उनके प्रति प्रियता को बढ़ाना।
भगवान् यह स्पष्ट आश्वासन देते हैं कि जो इन बिन्दुओं का पालन करेगा वह उन्हें प्राप्त हो मृत्यु रूपी-फॉँसी से सदा के लिए मुक्त हो जाएगा।
तो आइए, इस नववर्ष में हम यह दृढ़ संकल्प लें कि भगवान् की इन आज्ञाओं का अपने जीवन में पालन कर मृत्यु के भय से मुक्त हो जाएँगे और परम आनन्द की ओर बढ़ चलें।
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