तांस्तथैव भजाम्यहम्
(सन्देश १६) – अक्टूबर 2011 का द्वितीय पाक्षिक निवेदन – ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: ।। अर्थात् “हे पार्थ! जो मनुष्य जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार से आश्रय देता हूँ, (क्योंकि) सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे मार्ग का अनुसरण करने को […]
लोकसंग्रह
(सन्देश १५) – अक्टूबर 2011 का प्रथम पाक्षिक निवेदन – १. भगवान् ने कर्मयोगी को लोकसंग्रह को दृष्टि में रखते हुए ही कर्म करने की आज्ञा दी है (गीता ३/२०) | इसके लिए उन्होंने राजर्षि जनक का उदाहरण दिया है तथा निरासक्त होकर निरन्तर कर्तव्य-कर्मों को करने के लिए कहा है (गीता ३/१९)। केवल सत्कर्म […]
योगक्षेमं वहाम्यहम्
(सन्देश १४) – सितम्बर 2011 का द्वितीय पाक्षिक निवेदन – श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान् का स्पष्ट वचन है – “अनन्याश्विन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं॑ वहाम्यहम्” अर्थात् जो भक्तजन अनन्य भाव से निरन्तर मेरा चिन्तन करते हुए सब प्रकार से मेरी उपासना करते हैं, ऐसे मुझसे नित्य जुड़े रहने वाले भक्तजनों का योगक्षेम […]
योग-भोग-रोग
(सन्देश १३) सितम्बर 2011 का प्रथम पाक्षिक निवेदन- सर्वशक्तिमान, सर्वान्तर्यामी, सर्वज्ञ एवम् सर्वसुहृद परमात्मा से जुड़ने को योग कहते हैं। वास्तव में तो जीव उस परमात्म-सत्ता से कभी पृथक हुआ ही नहीं, किन्तु उसे केवल भूल गया है। इस भूल के कारण वह अपने को उससे पृथक मान बैठा है। इस भूल को मिटाना […]
उल्लासमय त्यौहार (उत्सव)
(सन्देश-१२) – अगस्त २०११ का द्वितीय पाक्षिक निवेदन – (आधार – परम पूज्य स्वामी बालकृष्ण दास जी “महाराजश्री” द्वारा रचित “लक्ष्य की ओर” पृ० १८९) परम पूज्य महाराजश्री के अनुसार “उत्सव उसका नाम है कि पूर्व से ही रहते हुए, वर्तमान में रहने के स्थायी-भाव से भावित प्रभावित कर दे। उत्सव में ही […]
नाम-अपराध-२
(सन्देश-११) – अगस्त २०११ का प्रथम पाक्षिक निवेदन – (गत निवेदन के आगे) (आधार – परम पूज्य “बाबूजी” द्वारा लिखित “श्री भगवन्नाम-चिन्तन” छ्ठा सस्करण-पृष्ठ ३९) ६. नाम का सहारा लेकर पाप करना – बुद्धि जब पापकर्म में लिप्त होती है तो कभी-कभी मनुष्य यह सोचकर पाप करता रहता है कि बाद में नाम-जप […]
नाम-अपराध-१
(सन्देश-१०) – जुलाई २०११ का द्वितीय पाक्षिक निवेदन – (आधार-परम पूज्य “बाबूजी” द्वारा लिखित “श्री भगवन्नाग-चिन्तन” छठा सस्करण-प्रष्ठ ३९) वैसे तो भगवान् का नाम जैसे भी लिया जाये, उसका फल अवश्य होता है, किन्तु अश्रद्धा, अविश्वास और सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के कारण उसके वास्तविक फल की प्राप्ति में देर हो जाती है। […]
प्रश्नोत्तर
(सन्देश-९) – जुलाई २०११ का प्रथम पाक्षिक निवेदन – प्र0-1. बहुधा देखा जाता है कि आध्यात्मिक सिद्धान्त समझ में आ भी जाते हैं, हम मान भी लेते हैं, किन्तु जीवन में प्रयोग करने में संकोच रहता है। ऐसा क्यों होता है? प्र0-२. साधन भी करते हैं जैसे जप, स्वाध्याय,सत्संग आदि – किन्तु यह प्रतीति […]
त्रिगुण विज्ञान(३)
जून-२०११ का द्वितीय पाक्षिक निवेदन- (गत पाक्षिक निवेदन के आगे) त्रिगुण विज्ञान से भगवत्प्राप्ति ५. मंत्र- “मननात् त्रायते इति मंत्र:/- जो मनन करने से कल्याण करे, वह मंत्र है। इसलिये शास्त्रों में आज्ञा दी गयी है कि जप करते समय उसकी अर्थ-भावना को अवश्य विचार में रखना चाहिये। मंत्र कुछ चुने हुए शब्दों […]
त्रिगुण विज्ञान(२)
जून-२०११ का प्रथम पाक्षिक निवेदन- गुणों की वृद्धि में सहायक तत्त्वों का विवेचन मई मास के द्वितीय पाक्षिक निवेदन के प्रस्तर-६ में पाँच तत्त्वों का उल्लेख किया गया है। ये तत्त्व तभी सहायक होते हैं, जब इनकी वृद्धि के लिये मन में उत्कट इच्छा होती है और तदनुसार भगवान् से उनमें वृद्धि के […]